Friday, August 22, 2014

प्रजापति को कुमावत लिखने का अधिकार नहीं हैं

। प्रजापति को कुमावत लिखने का अधिकार नहीं हैं

कुम्भ अर्थात कलश का प्राचीन काल से महत्त्व चला आ रहा है,कलश के शीर्ष, मध्य व अंतिम तल भाग में तीनो ब्रह्मा,विष्णु व सदाशिव का निवास माना गया है जिसके चलते कलश का वर्तमान में भी धार्मिक महत्त्व है।मिट्टी का कलश मात्र कलश नही देवताओं का निवास स्थल है,और जो इस कलश का निर्माता है, उसका सम्मान अपने आप ऊपर हो जाता है।

वास्तव में "कुमावत" कौन है


श्री राजपूत सभा जयपुर द्वारा प्रकाशित"राजस्थान के कछवाहा" नामक पुस्तक में लेखक कुंवर देवी सिंह मण्डावा ने कछवाहा राजवंश की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि में लिखा है कि आमेर के राजा श्री चन्द्रसेन जी के राज्य काल में दिल्ली के लोदी सुल्तान के सेनापति हिन्दाल ने जब अमरसर के शेखावतों पर हमला किया तब राजा चन्द्रसेन जी ने अपने छोटे पुत्र कुम्भा जी को राव रायमल जी शेखावत की मदद को भेजा । इस युध्द में कुम्भा जी वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।

कुमावतों का मुख्य ठिकाना महार था । कुमावतों का महार ताजिमी ठिकाना था । कुमावतों का छोटी महार,बघवड़ा,पालड़ी,बीसोल्या आदि ठिकाने थे । बीकानेर राज्य में कुमावतों का एक ठिकाना सादि ताजीमा भालेरी(चुरु) था। आमेर के राजा श्री चन्द्रसेन जी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र पृथ्वीराज जी आमेर की गददी पर 11 फरवरी सन 1503 को बैठे । राजा पृथ्वीराज के बाद उनके पुत्र राजा भरमल जी ने कछवाहा राजपूतों की 12 कोटड़ी(खांप या तड़) कायम की "12 कोटड़ी" पुस्तक अनुसार (1) हमीरदेका , (2) कुम्भाणी , (3) स्योब्रहमपोता , (4) वणवीरपोता , (5)कुमावत ,(6)पच्याणोत ,(7)सुलतानोता , (8)नथावत , (9)खंगारोत ,(10)बलभद्रोत , (11) चतुर्भुजोत , (12)कल्यणोत , आदि सर्व मान्य 12 कोटड़ी थी ।
जयपुर मर्दुमशुमारी (सम्वत 1889 ) के अनुसार कछ्वाहा राजपूतों की (1) हमीरदेका , (2) कुम्भाणी , (3) स्योब्रहमपोता ,  (4)कुमावत , (5)रामसिहोत , (6)पच्याणोत ,(7)सुलतानोता , (8)नथावत , (9)खंगारोत ,(10)बलभद्रोत , (11) चतुर्भुजोत , (12)कल्यणोत , (13) पुरण्मलोत, (14)प्रतापपोता, (15) सांईदासोत, (16) कोटड़ी (खाप) थी ।
                 उपरोक्त एतिहासिक रिकार्ड से स्पष्ट है कि "कुमावत" कछहावा राजपूतों की एक कोटड़ी या खांप है  अतः कुम्हार जाति को "कुमावत" शब्द लिखने का अधिकार नही है ।