Wednesday, November 26, 2014

प्रजापति हैं हम ,हमारे पास कितना हैं दम

बंगले . गाडी तो " प्रजापति " की घर घर
की कहानी हैं.........
तभी तो दुनिया " प्रजापति " ओ
की दिवानी हैं...
अरे मिट गये " प्रजापति " को मिटाने वाले
क्योकि आग मे तपती " प्रजापति "
की जवानी है..
ये आवाज नही शेर कि दहाड़ है…..
हम खडे हो जाये तो पहाड़ है…...
हम इतिहास के वो सुनहरे पन्ने है…..
जो भगवान राम ने ही चुने है….
दिलदार औऱ दमदार है" " प्रजापति..
रण भुमि मे तेज तलवार है"" प्रजापति "
पता नही कितनो की जान है प्रजापति "..
सच्चे प्यार पर कुरबान है"" " प्रजापति..
यारी करे तो यारो के यार है"" " "
प्रजापति "
औऱ दुशमन के लिये तुफान है"" " प्रजापति " ""..
तभी तो दुनिया कहती है बाप रे खतरनाक
है"" "
प्रजापति """"..
शेरो के पुत्र शेर ही ज़ाने जाते हैं, लाखो के
बीच. " प्रजापति "
पहचाने जाते हैं।।..
मौत देख कर किसी क़े पिछे छुपते नही ,हम"
प्रजापति " ,
मरने से क़भी डरते नही। हम
अपने आप पर ग़र्व क़रते हैं,
दुशमनों को काटने का जीगरा हम रखते हैं ,..
कोई ना दे हमें खुश रहने की दुआ,
तो भी कोई बात नहीं...
वैसे भी हम खुशियाँ रखते नहीं,
बाँट दिया करते हैं।

Friday, November 21, 2014

लाख रोगों की एक दवा का काम करता है यह मंत्र



     लाख रोगों की एक दवा का काम करता है यह मंत्र


मंत्र जाप में इतनी शक्ति होती है कि इनसे कई तरह के रोगों का उपचार होता है। यहां तक कि इसको अध्यात्म का दवाखाना भी कहा जाता है।

 “ॐ रुद्राये नमह”

 उपरोक्त मंत्र को सिद्ध करने के लिए 6 महीने तक प्रतिदिन एक माला जाप करें। इस मंत्र के प्रभाव से कठिन एवं असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त होती है। गंभीर रोग की स्थिति में पानी में देखकर मंत्र जाप करें और वो पानी रोगी को पीने के लिए दे दें। स्वयं बीमार हों तो भी ऐसा ही करें।

इस जाप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भी मंत्र जप अपने मन की माला से करते रहे। मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए। मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एंव सांयकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है।

तिलक लगाना क्या हैं ? जानिए

सनातन संस्कृति में प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परंपरा चली आ रही है। मानव शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं, जिन्हें चक्र कहते हैं। मस्तिष्क के बीच में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वहां आज्ञाचक्र स्थापित होता है। इसे गुरुचक्र भी कहते है। 

इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है। ज्योतिष में आज्ञाचक्र बृहस्पति का केन्द्र है। इसे गुरु का प्रतीक-प्रतिनिधि माना गया है। बृहस्पति देवताओं के गुरु है, अस्तु, साधना ग्रन्थों में इसे गुरुचक्र के नाम से अभिहित किया गया है। 

मस्तक पर तिलक लगाने को शुभ और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। सफलता प्राप्ती के लिए रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुमकुम का तिलक लगाने की प्रथा है। यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे हैं, तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाएं। यह टीका आपकी सफलता में मददगार साबित होगा। जो जातक तिलक के ऊपर चावल लगाता है लक्ष्मी उस जातक के आकर्षण में बंध जाती है और सदा उसके अंग-संग रहती है।

प्रत्येक उंगली से तिलक लगाने का अपना-अपना महत्व है जैसे मोक्ष की इच्छा रखने वाले को अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए, शत्रु नाश करना चाहते हैं तो तर्जनी से, धनवान बनने की इच्छा है तो मध्यमा से और सुख-शान्ति प्चाहते हैं तो अनामिका से तिलक लगाएं। देवताओ को मध्यमा उंगली से तिलक लगाया जाता है। उत्तर भारत में तिलक आरती के साथ आदर, सत्कार और स्वागत कर तिलक लगाया जाता है।